Monday, March 15, 2010

Half Papulation W/S Triple Yadav…

देश मे खेले जा रहे महिला आरक्षण बिल टुर्नामेंट रोमांचक दौर मे पहुच गया है। सरकार और विपक्ष के बीच हो रहे इस टुर्नामेंट मे काँग्रेस समर्थित यूपीए सरकार ने पहला मैच 186-1 जीत से जीता था। राज्यसभा मे खेला गया ये मैच काफी संधर्सपूर्ण रहा। हालाकि विपक्ष का स्कोर कम होने से मुकाबला एकतरफा था। लेकिन विपक्षी खिलाड़ियो के उग्र तेवर से सरकार एकादश को मैच जीतने के लिये ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। कमजोर विपक्ष एकादश ने मैच जीतने के लिये नियमो का उल्लनधन भी् किया। पहले तो विपक्ष ने बॉल के टुकड़े टुकड़े कर दिये। फिर उन टुकड़ो को एम्पायरिंग कर रहे हामिद अंसारी के ऊपर फेंककर मैच को रोकने की नाकाम कोशिश की। जिससे स्टेडियम की गरिमा तार तार हो गयी। इतना सब कुछ करने के बाद भी महिला आरक्षण विरोधी टीम हार को टालने मे नाकाम रही। इस जीत से सरकार का होसला कुछ बढा था। लेकिन सरकार को इस प्रतिष्ठित सीरीज को जीतना अभी भी एक चुनोती बनी हुई है। जिसकी एक झलक लोक सभा मे खेले जा रहे सीरीज के दूसरे मैच मे देखने को मिली।
क्योकी राज्य सभा मे कमजोर टीम से जीत कर आई सरकार एकादश का मुकाबला अब दमदार विपक्ष एकादश से था। लालु यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव विपक्ष एकादश की कमान संभाले हुए थे। यादव तिकड़ी पूरे जोर के साथ मुकाबले मे खड़ा था और किसी भी सूरत मे ये टुर्नामेंट हारना नही चाहता था। इसी कारण लोक सभा मे दो दिनो तक चला मैच बेनतीजा रहा। जिसके चलते सरकार को ही अपने क़दम पीछे करने पड़े। हालाकी सरकार के पास देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा का भी साथ था लेकिन विरोधी टीम के सामने ये साथ भी कमजोर पड़ गया।
यहा बात हो रही है महिला आरक्षण बिल की। जिसकी शुरुआत स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने महिलाऔ की दशा सुधारने के लिये उनहे राज्य सभा और लोकसभा मे 33% आरक्षण का प्रावधान लाने की बात कही थी। लेकिन इसकी बाद किसी ने इस और ध्यान दिया। कुछ सालो बाद काँग्रस सरकार का भी तखता पलट हो गया। और देश की कमान भाजपा के हाथो मे आ गयी। 1998-99 मे भाजपा सरकार प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नैतत्व मे संसद मे इस बिल पर चर्चा हुई। बिल पर देश की आधी आबादी को मिलने वाले आरक्षण पर सांसद दो गुटो मे बॅट गये। और महिला आरक्षण बिल फिर ठण्डे बस्ते मे समा गया। आरक्षण विरोधी पार्टीयो या सांसदो की विरोध की वजह कई थी। कुछ नेता इस आरक्षण को फिजूल मान रहे थे। क्योकी उनके मन मे आज भी पुरुष प्रधान देश की मानसिकता पनप रही थी। शायद विरोध की वजह सांसदो की वो सोच भी रही होगी जिसमे वो आज भी महिलाऔ को चुल्हा चोखा के काम से ज्यादा की उम्मीद नही रखते। लेकिन आरक्षण के विरोध की सबसे बढी वजह पक्ष और विपक्ष की राजनीति है। सरकार के किसी भी फैसले का विरोध करना विपक्षी पार्टीयो की परम्परा रह है। और अब जब दूसरी बार काँग्रेस इसे मंजूरी देने के लिये संसद मे पेश किया गया तो लालु, मुलायम, और शरद पवार इसके विरोध मे खड़े हो गये। इनके अनुसार मोजूदा बिल का स्वरुप दलित, मुस्लिम और पिछड़ी जाती के खिलाफ है। जिससे बिल के पारित होने से इनको कुछ लाभ नही होगा। यादव तिकड़ी आरक्षण को 33% से बढाकर 50% की माँग कर रही है। साथ ही दलित, मुस्लिम, और पिछड़ो के लिये इसमे अलग से माँग पर अड़ी है। जिसके लिये इनहोने पहले तो राज्य सभा मे अपने नुमाइन्दो बिल पर खूब हल्ला मचवाया और अब लोक सभा खुद मोर्चा सम्भाले खड़े है। वैसे बात इनकी भी गलत नही है। क्योकी जिन के लिये आज ये जंग लड़ रहे है। उनकी वजह से ही इनका राजनीतिक अस्तित्व है। तो फिर मिले मिलाये मौके को भूनाने से कोई कैसे चूक सकता है। भले ही कभी इनहोनो इन तबको को चुनाव मे न उतारा हो। उत्तर प्रदेश के चार बार मुख्यमंत्री बनने वाले मुलायम सिंह यादव बताऐ कि जिनके वोटो से वो मुख्यमंत्री बने उस तबके के कितने लोगो को उनहोने टिकट देकर मैदान मे उतारा। इसी सवाल का जवाब शायद ही लालू और शरद यादव के पास हो। जिन के लिये ये 50% महीला आरक्षण की बात कर रहै है। क्या कभी इनहोने मुस्लिम दलित या पिछड़ो को 10% भी चुनाव मे उतारा। बात बिलकुल साफ है। राजनीतिक पार्टीया अपने स्वार्थ के लिये ये सब हथकंडे अपनाती है। आज अगर मुख्य विपक्षी दल सरकार के साथ बिल का समर्थन कर रहा है, तो सिर्फ इसलिये कि 1998 मे उनकी पार्टी भी इस बिल को पारित करने की रणनीति अपना चुकी है। और अब भी वो एकमत होकर सरकार के साथ नही है। 50 से ज्यादा भाजपा सांसद दबी कुची आवाज मे बिल का विरोध कर ऱहे है। यही वजह है कि पिछले डेढ दशक से ये ऐतिहासिक बिल आज तक पास नही हो पाया। और देश की आधी आबादी (महिलाऔ) को कुछ स्वार्थी नेताऔ के कारण उनहे वो हक नही मिल पाया जिसकी वो हकदार है।.......